Wednesday, 24 June 2015

25/06/15 01:29:42: Gulneet Singh Khurana: खाकी का दर्द अरविन्द केजरीवाल की ज़ुबानी ।

पुलिस की जितनी बुरी छवि है,
वास्तव में पुलिस उतनी बुरी है नहीं।
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पुलिस वाले अपनी जान जोखिम में डाल
कर जिन मुजरिमो को पकडते हैं
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उन्हें वकील 5 मिनट में जमानत दिलवा देते
हें।
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15साल के स्थायी वारंटी को वकील
10 मिनट भी जेल में नहीं रहने देते।
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कौन भ्रष्ट है?
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यही पुलिस वाले दिन हो या रात
अपनी ड्यूटी इमानदारी से निभाते हैं।
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कोई भी त्यौहार परिवार के साथ
मनाने का सौभाग्य तो मिल
ही नहीं पाता।
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सैलेरी इतनी कम की हाथ
ठेला वाला भी इनसे
ज्यादा कमा लेता है।
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ड्यूटी 24 घंटे।
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सरकारी आवास इतने छोटे
की बता भी नहीं सकते।
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सरिये बाहर दिखने लग गए हैं।
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अगर घर पर कोई मेहमान आ जाये
तो सोचना पड़ता है कि आज सोयेंगे
कहाँ और कैसे ?
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और अगर बारिश के दिन
हो तो बयां करना भी मुश्किल।
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कहने को तो एक साल में 60 छुट्टियाँ हैं
पर मिलती बमुश्किल 6 भी नहीं।
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पुलिस वाले अपनी दास्ताँ किसे
सुनाये।
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असलियत में तिराहे-चौराहे, मोहल्ले के
साथ पुलिस हर जगह नज़र आती है,
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इसलिए उसका छोटा-
मोटा भ्रष्टाचार भी सबकी नज़र में
रहता है।
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सामान्य तौर पर पुलिस किसी के
लालच में आकर
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अधिक से अधिक एक-दो थप्पड़ मार
देती है,
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ज्यादा से ज्यादा उठा कर 151 में
चालान कर देती है,
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नियम तोड़ने पर चालान काटने की जगह
सौ-पचास रूपये लेकर छोड़ देती है,
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चूँकि हर आम आदमी का पाला पड़ता है,
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सो पुलिस की छवि कुख्यात वाली बन
गई है।
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वास्तव में भ्रष्टाचार देखना हो तो
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चकबंदी कार्यालय जाईये,
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अस्पताल जाईये,
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विकास विभाग जाइये,
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कलेक्ट्रेट जाईये,
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बैंक में जाईये...
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अच्छे-भले खेत की जगह बंजर दे देता है
लेखपाल...
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छोटी-मोटी चोट पर ही धारा 307
कीरिपोर्ट बना देता है डॉक्टर...
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बाबू पच्चीस-तीस हजार
का इंदिरा आवास दस हजार लेकर
देता है...
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पूर्ति अधिकारी एक महीने का राशन
खुद खा जाता है...
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पचास हजार ऋण बैंक प्रबन्धक दस-पन्द्रह
हजार लेकर मंजूर करता है...
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एनजीओ को दस लाख रूपये नकद दो लाख
देने के बाद मिलते हैं
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और बचे आठ लाख वो खुद खा जाता है...
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और पत्रकार ही ही ही...
+
अब सोचिये,
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इन सब के बीच में तो पुलिस
को ईमानदारी का गोल्ड मेडल
मिलना चाहिए या नहीं...?
+
पुलिस की छवि जितनी खराब
दिखाई/बताई जा रही है, उतनी खराब
वास्तव में होती,
+
तो किसी भी तरह की अनहोनी होने
पर पहला ध्यान पुलिस की ओर
नहीं जाता।
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खुद भी कुछ गलत करने का मन करता है,
+
तो पहला डर मन में पुलिस का महसूस
होता है...
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पुलिस न हो, तो हाहाकार मच जाये...
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हाँ, सौ में सौ नंबर नहीं है, पर पुलिस
आज भी ईमानदारी में सर्वश्रेष्ठ है।
+
वो भी तब, जब पुलिस पर चारों ओर से
राजनैतिक दबाव बना हुआ है।
+
यदि पुलिस पर से सिर्फ राजनैतिक
दबाव खत्म हो जाये,
+
तो पुलिस आज भी सौ प्रतिशत
ईमानदार हो जायेगी।
+
अगर आपको लगता है कि पुलिस
गुनाहगार है तो
+
क्यों आधी रात को सुनसान जगह
गाडी पंचर हो जाए तो
+
पुलिस भगवान की तरह नज़र आती है?
+j
ये मेरे भाव अगर किसी को बुरे लगे
तो क्षमा चाहूँगा।
और
अच्छा लगे तो आगे शेयर जरूर करे।😊.

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